An Unbiased View of मध्यकालीन भारत का इतिहास

आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ से से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ “वन” होता है। आरण्यक वे धर्म ग्रन्थ हैं जिन्हें वन में ऋषियों द्वारा लिखा गया। आरण्यक ग्रंथों में अध्यात्म तथा दर्शन का वर्णन है, इनकी विषयवस्तु काफी गूढ़ है। आरण्यक की रचना ग्रंथो के बाद हुई और यह अलग-अलग वेदों के साथ संलग्न है, परन्तु अथर्ववेद को किसी भी आरण्यक से नहीं जोड़ा गया है।

एन. डी के अनुसार, ‘‘यद्यपि पुस्तक की शैली अत्यधिक कलात्मक और अलंकृत है, पर इसमें वर्णित सामान्य तथ्य साधारणतः सत्य है।’’ तबकात-ए-नासिरी[संपादित करें]

यह सामग्री क्रियेटिव कॉमन्स ऍट्रीब्यूशन/शेयर-अलाइक लाइसेंस के तहत उपलब्ध है;

निजी अभिलेख प्रायः मंदिरों में या मूर्तियों पर उत्कीर्ण हैं। इन पर खुदी हुई तिथियों से मंदिर-निर्माण या मूर्ति-प्रतिष्ठापन के समय का ज्ञान होता है। इसके अलावा यवन राजदूत हेलियोडोरस का बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुड़ स्तंभ लेख, वाराह प्रतिमा पर एरण (मध्य प्रदेश) से प्राप्त हूण राजा तोरमाण के लेख जैसे अभिलेख भी इतिहास-निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इन अभिलेखों से मूर्तिकला और वास्तुकला के विकास पर प्रकाश पड़ता है और तत्कालीन धार्मिक जीवन का ज्ञान होता है।

बुगरा खाँ एवं उसके बेटे कैकुबाद के मिलन का वर्णन है।

इस ग्रंथ में भारत की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति के बारे में सुन्दर वर्णन मिलता है। प्रकृति-प्रेमी होने के कारण बाबर ने इसमें तत्कालीन फल-फूल, भोजन, रहन-सहन का स्तर, नदी-नालों आदि के सम्बन्ध में भी विस्तृत वर्णन किया है। इस ग्रंथ से भारत तथा मध्य एशिया के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। हुमायूंनामा[संपादित करें]

अकबरनामा तीन जिल्दों में बंटा हुआ, इसके तीसरे जिल्द को आइने अकबरी नाम दिया गया है।

आईने-अकबरी के बारे में डॉ॰ अवधबिहारी पाण्डेय ने लिखा है, ‘‘एशिया अथवा यूरोप में कहीं भी ऐसी पुस्तक की रचना नहीं हुई है।’’ जे.एन. सरकार के अनुसार, ‘‘भारत में यह अपनी कोटि का प्रथम ग्रंथ है और इसकी रचना उस समय हुई थी, जिस समय नवनिर्मित मुगल शासन अर्द्ध-तरलावस्था में था।’’ के.

यद्यपि यह अकबरनामा का तृतीय भाग है, तथापि इसे पृथक् ग्रंथ माना जाता है। इसमें अकबर के शासनकाल से सम्बन्धित आंकड़े तथा शासन-व्यवस्था सम्बन्धी अन्य नियमों का विस्तृत वर्णन है। अबुल फजल के इस ग्रंथ का ब्लोचमेन तथा गैरेट ने अंग्रेजी अनुवाद किया है। इससे तत्कालीन समय की राजनीतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा आर्थिक स्थिति के बारे में विश्वसनीय जानकारी मिलती है।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत

धार्मिक साहित्य का उद्देश्य मुख्यतया अपने धर्म के सिद्धांतों का उपदेश देना था, इसलिए उनसे राजनीतिक गतिविधियों पर कम प्रकाश पड़ता है। राजनैतिक इतिहास-संबंधी जानकारी की दृष्टि read more से धर्मेतर साहित्य अधिक उपयोगी हैं।

यह ग्रंथ अब्बास खां शेरवानी ने अकबर की आज्ञा से लिखा था। उसने इसका नाम ‘तोहफत-ए-अकबरशाही’ रखा था, किन्तु कुछ वर्षों बाद अहमद यादगार ने ‘तारीख-ए-सलातीन-ए-अफगान’ नामक ग्रंथ लिखा, उसने इस पुस्तक को ‘तारीख-ए-शेरशाही’ के नाम से संबोधित किया तथा वह इसी नाम से प्रसिद्ध है।

प्रत्यक्षदर्शींचं म्हणणं आहे की, हाथरस दुर्घटनेत जीव गमावलेल्यांचा आकडा अजून वाढू शकतो.

त॒म् इतिहास॒श् च पुराणं॒ च गा॒थाश् च नाराशंसी॒श् चानुव्य॑चलन् ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *